रिलिजन एंड पॉलिटिक्स
- radhika-sinha
- Apr 17, 2023
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Updated: Jan 11
हिन्दुस्थान में एक बिलियन लोग रहते है, जिन में से ८५% हिन्दू है, १०% मुस्लिम और ५% क्रिस्टिअन्स I भारत में विभिन्न प्रकार के धर्म पाये जाते है और उन धर्मों के अनुसार भारतीय समाज में नाना प्रकार की परम्पराएं और प्रथाऐं प्रचलित हैं, इन सबमें भारतीय समाज, भारतीय साहित्य, सभ्यता और संस्कृति, भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति को एक बड़े पैमाने तक प्रभावित किया है। इस प्रभाव की विचित्रताओं, विशिष्टताओं और विभिन्नताओं को दृष्टिगत रखते हुए यदि यह कहा जाये कि भारत विभिन्न धर्मों का अजायबघर है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। शायद ही कोई भारतीय चिन्तक ऐसा हो जो भारत में विद्यमान धर्म या धर्मों से प्रभावित न हुआ हो। हिंदुत्व में धर्म और मनुष्य की व्याख्या करते हुए कितनी सुन्दर और सटीक बात कही गयी है कि यह शरीर नश्वर है और आत्मा अजर अमर है और मरने के बाद व्यक्ति के कर्म और कर्मफल तक यहीं रह जाते हैं I किन्तु, यही बात हमारे राजनेताओं को कौन समझाए, जो व्यक्ति के मरने के बाद उसकी जाति-धर्म का रोना शुरू कर देते हैं I उनके आंसू तो निश्चित रूप से घड़ियाली ही होते हैं, किन्तु वह जनता को आक्रोशित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं I हमारे देश का यह दुर्भाग्य ही है कि अगर किसी हादसे में किसी की जान चली जाती है तो उसे तुरंत उसकी जाति अथवा धर्म से जोड़ दिया जाता है I सिर्फ दुर्भाग्य ही नहीं, बल्कि यह शर्म का विषय है कि किसी व्यक्ति को दलित या मुसलमान बनाकर उसकी मौत का तो मजाक बनाया ही जाता है I हम देखते हैं कि राजनीति ने भी अपने वोट बैंक और स्वार्थलोलुपता के कारण धर्म का दुरुपयोग किया वहीं धर्म ने अपना आदर्श छोड़कर राजनीतिक गलियारों में अपना रुतबा कायम करने की कोशिश की जिससे कट्टर सांप्रदायिक ताकतों का जन्म हुआ जो भारतीय समाज को आगे बढ़ने में रुकावट पैदा कर रही है।

कोई भी धार्मिक यात्रा और जुलूस या मुहर्रम के ताजिये हों, उनके आगे नाचते, लाठियां चलाते, मुंह से झाग निकालते, आसपास चलते लोगों पर कहर बरपाते लड़कों का हुजूम होता है। सड़कों पर ट्रैफिक जाम, विवश लोग। कुछ समय पहले गणेश चतुर्दशी के बाद प्रतिमा विसर्जन के दिन भक्तों ने ‘चलती दिल्ली’ को रोक दिया था। भक्त ट्रकों में रखी प्रतिमाओं के साथ सड़कों पर ढोल-मंजीरे बजाते, नाचते, लाउडस्पीकर में गाते जा रहे थे, आते-जाते वाहनों को रोक कर उन्हें टीका लगाते। रिंग रोड पर लगभग चार सौ ट्रक प्रतिमा विसर्जन के लिए खड़े थे। विसर्जन के दौरान यमुना में लोग डूब रहे थे, बचाव का प्रबंध नहीं था। एक तरफ भक्तों का उन्माद था तो दूसरी ओर प्रशासन की लापरवाही। न कहीं रोकटोक, न पुलिस। बांस की बल्लियां भी नहीं, पानी की गहराई का अनुमान लगाना संभव नहीं था। लोगों में अपनों के सुरक्षित लौटने की चिंता थी। अगले दिन भी लोग डूबे! फिर वही लापरवाही। कारण और भी है। धर्म का राजनीतिकरण। वोट बैंक की नीति ने चारों तरफ अव्यवस्था फैला रखी है। धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक पार्टियां अपना समर्थन देती हैं और इन आयोजनों में लगने वाले पोस्टरों में अपना प्रचार भी करती हैं। दिन में पांच बार मस्जिद में लाउडस्पीकर पर पढ़ी जाने वाली नमाज। विशेष दिनों में मंदिरों में देर रात तक ढोल, शंख ध्वनियां और भजनों का लाउडस्पीकर पर शोर। कानूनन इन पर प्रतिबंध है। पर कहां है प्रतिबंध? शोर रुका है?इस ध्वनि प्रदूषण को बिना राजनीतिक इच्छा के रोका ही नहीं जा सकता। पानी में विसर्जित होने वाली हजारों की संख्या में मूर्तियों से जल प्रदूषण का खतरा बढ़ता जा रहा है। ये मूर्तियां सिर्फ मिट्टी की नहीं होतीं। इनमें तरह-तरह के रसायनों, रंग-रोगन और पेंट भी रहते हैं। धर्म के नाम पर होने वाली प्राकृतिक स्रोतों की इस विनाशलीला को रोका जाना चाहिए। पर कैसे रुकेगा यह सब, जब तक इन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। कोई रास्ता तो निकालना होगा। वर्तमान समय में और विशेषकर भारत के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक नेतागण, इस बात की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं कि धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए. यह इस लिए प्रबल समस्या बन गई है कि राजनीति के काम में सब जगह धर्मों के अनुयायी अपने-अपने धर्म को राजनीति से जोड़ने की कोशिश करते हैं I ऐसा करने से उनके धर्म को बल मिलता है I और शक्ति से लोगों को विवश किया जाता है कि उनके धर्मों में अधिक से अधिक लोग आएं ताकि उस धर्म के अनुयायी अपनी इच्छा के अनुसार सरकार बना लें I
राजनीति का काम है बुराई से लड़े और उसकी निन्दा करे। जब धर्म अच्छाई न करे केवल स्तुति भर करता है तो वह निष्प्राण हो जाता है और राजनीति जब बुराई से लड़ती नहीं, केवल निन्दा भर करती है तो वह कलही हो जाती है। इसलिए आवश्यक है कि धर्म और राजनीति के मूल तत्व समझ में आ जाए। धर्म और राजनीति का अविवेकी मिलन दोनों को भ्रष्ट कर देता है, फिर भी जरूरी है कि धर्म और राजनीति एक दूसरे से सम्पर्क न तोड़ें, मर्यादा निभाते रहें।’’ धर्म और राजनीति के अविवेकी मिलन से दोनों भ्रष्ट होते हैं, इस अविवेकपूर्ण मिलन से साम्प्रदायिक कट्टरता जन्म लेती है। धर्म और राजनीति को अलग रखने का सबसे बड़ा मतलब यही है कि साम्प्रदायिक कट्टरता से बचा जाय। राजनीति के दण्ड और धर्म की व्यवस्थाओं को अलग रखना चाहिए नहीं तो, दकियानूसी बढ़ सकती है और अत्याचार भी। लेकिन फिर भी जरूरी है कि धर्म और राजनीति सम्पर्क न तोड़े बल्कि मर्यादा निभाते हुए परस्पर सहयोग करें।
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